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कादम्बरी / पृष्ठ 143 / दामोदर झा

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14.
जनिते ई हम छलहुँ मात्र वनिता डाणहिंसँ
अछि उत्पत्ति अहाँक हयब दुर्बल प्राणहिसँ।
आयुष्कर नहि क्रिया कयल सोचैत बितओलहुँ
सब टा समय आलसे हम तकरे फल पओलहुँ॥

15.
आब करै छी से आयुष्कर मख जीवन लय
सब विधान सब होता गण संग सावधान भय।
यज्ञ पूर्ण भेलासँ से शरीर पुनि गहबे
तावत सहितो कष्ट एतय शुक तनु से रहबे॥

16.
हमर यज्ञ चलि रहल पूर्ण ई नहि हो यावत
रहब अहाँ मन मारि हिनक आश्रममे ताबत।
पुनि चंचलता कय अन्यत्र कतहु ज जायब
औखनसँ बेसी दुख भोगि अधोगति पायब॥

17.
ताही यज्ञक एक कुण्ड केर हम पुरहित छी
बाधा हयत काजमे ते लगले जाइत छी।
हमरा उरमे लगा राखि ओ नभमे उड़ला
छन भरि रहबा लय कहलहुँ हम ओ नहि मुड़ला॥

18.
गेल कपिंचल बिसरल दुखके दोगुन क’ क’
जतबो मनमे धैर्य छलय से सब टा ल’ क’।
भय निरुपाय अधीर विवश हम समय बिताबी
भेल पाँखि मजगूत लगहिसँ उड़िया आबी॥