भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कादम्बरी / पृष्ठ 145 / दामोदर झा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

24.
चन्द्रापीड़क जन्म कतय पुनि से अविदित अछि
तपथि महाश्वेता अच्छोदहिं से निश्चित अछि।
बैसल विरहक आगि एतय हम नहि सहि सकबे
वरु गुरु आज्ञा उल्लंघनक कलंको रखबे॥

25.
ई बिचारि मन जयबा लय हम उद्यत भेलहुँ
प्रात बिहारक काले उत्तर दिशि चलि देलहुँ।
उड़लहुँ जान उपेखि अनभ्यासे बड़ थकलहुँ
छधा तृषासँ पीडित्रत एक गाछ पर रुकलहुँ॥

26.
खयलहुँ किछ फल जाय सरोवरमे जल पीलहुँ
दुस्सह रौद बिताबए तरु कोटरमे गेलहुँ।
थाकल छलहुँ कयल विश्राम नीन चल आयल
मुनलक हमरो आँखि सुषुम्ना मनहुँ समायल॥

27.
बड़ी काल पर टूटल नीन जाल पसरल छल
धरबा लय करिया अहि सदृश हाथ ससरल छल।
फड़फड़ाय चंचुहुसँ कटलहुँ तैओ धयलक
हलुके हाथे आनि लोह पिजड़ामे रखलक॥

28.
उतरि गाछसँ वन दिशि चलल कृतारथ बनले
डरितो डरितो आँखि अपन ओकरा दिशि तनले।
महा भयंकर देह छलै यमराज दूत सन
कारी खुन्झा वस्त्र मैल मुह लगै भूत सन॥