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कादम्बरी / पृष्ठ 148 / दामोदर झा

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39.
बालकगण पक्षीक मुण्डकेर माला बनबय
नर बलि देने छल खप्पड़ केर प्याला बनबय।
छानल काअल जाइत महिस करुण चिकरै छल
छरहिसँ लखि लखि सब पशु डरसँ हुकरै छल॥

40.
भय बँसबाड़िक पार भील बस्तीमे गेलहु
आब करत की ई गुनि हम तँ डरहिं सुखयलहुँ।
बड़का खोपड़ी लग पहुँचल एकरा आङनमे
तखन छलय कुद्रू पे ई बड़ मैल वसनमे॥

41.
कहल मालिकिनि धय अनलहुँ वैशम्पायन शुक
रहै छलहुँ जकरा लय अहाँ सतत बड़ उत्सुक।
लेलक पिजड़ा आचल हमरा अपना घरमे
पिजड़ासँ बाहर कय पुनि लेलक निज करमे॥

42.
बहुत काल धरि नोर बहबिते हृदय लगओलक
किछु नहि कहलक पुनि हमरा पिजड़ामे रखलक।
सोचल हम निज दोषे कठिन बिपतिमे पड़लहुँ
ब्राह्मण छी विद्वान एतय डोमक घर सड़लहुँ॥

43.
निज कर्मक दोषे ई जीवन भारे हयते
आयु हमर निर्घिन नरकक आगारे हयते।
जनक वचन उल्लंघन करबाकेर फल पओलहुँ
प्रिया दरस लय चलल छलहुँ नरकक पुर अयलहुँ॥