Last modified on 31 अक्टूबर 2013, at 16:21

कादम्बरी / पृष्ठ 149 / दामोदर झा

44.
आब करब की जा धरि जीव देहके साधब
परिहरि अन्न पानि टोकनहुँ मौने आराधब।
ई छी ड़ी तमसाय मोकि कण्ठो जँ मारत
वा छोड़त बनमे भोजनक यत्न कय हारत॥

45.
लड्डू दूनू हाथ बिपतिसँ फुरसति पायब
मरब जीव जे किछ नरकक पुरसँ बहरायब।
ई बिचारि हम धयलहुँ मौन मरै लय बैसल
सदय भावसँ ई फल जल पिजड़ामे दै छल॥

46.
पड़ले रहै कनेको नहि हम ठोर लगाबी
एक काज दिन राति नयनसँ नोर बहाबी।
किछु पढ़बै छल क्यो किछु सिखबय चुप्पे रहलहुँ
कड़ची भो कि खो चाड़य तँ केवल चिक्करलहुँ॥

47.
चारिम दिन ई बड़ आदरसँ बाहर कयलक
अपना आँखिक नोर पोछि लय हृदय लगओलक।
कहलक पुत्र एना शरीरके किए सधै छह
चंचल मनकेर दोष देहके शासन दै छह॥

48.
सुमधुर फल अछि खाह सलिल शीतल अछि पीबह
वचनो बाजह नहि तँ ओना कोना तो जीबह।
जाबालिक आश्रममे बड़ वक्ता बनि रहलह
एतय आबि तो जड़ हयवाकेर ढंचर धयलह॥