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कादम्बरी / पृष्ठ 150 / दामोदर झा

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49.
जनि बाजह बरु देह रखै लय जल फल चीखह
डोमक भक्ष्याभक्ष्य विचार कात कय राखह।
तिर्यक योनि जनमलाहय अछोप बुझने छह
पक्षीकेर मूड़न उपनयन कतय पढ़ने छह॥

50.
पूर्व जनम जँ ब्राह्मण छलहुँ बात सुमिरै छह
पक्षीकेर आचरण एखन नहि किए करै छह।
दाँतक काटल ऐंठौ फल तो खयबे कयलह
जाबालिक आश्रममे ओ द्विज धर्म गमओलह॥

51.
आपति काल अभक्ष्यो खा द्विज तनु रखने छथि
विश्वामित्र चेरु डोमक कुकुरक चिखने छथि।
चण्डालक धैयलहुसँ जल भूतलपर खसने
हो पवित्र शास्त्रहुसँ फल गोरस शुचि अशने॥

52.
तीन दिवस उपवास साँस मरबाकेर लै छह
निज वध करबह सोझाँमे हमरहुँ दुख दै छह।
जीबालय पुनि भोजन सलिल मूल फल चीखह
पुत्र, एना नहि करह बात हमरो किछ राखह॥

53.
ई सुनि चौं कि निंघाड़ि तखन एकटा अनुमानल
त्रिकालज्ञ विदुषी के देवी थिक हम जानल।
सोचल ई निश्चय चण्डालक नहि बेटी थिक
कर्मदशामे हमरहि जकाँ पड़लि खेटी थिक॥