कादम्बरी / पृष्ठ 151 / दामोदर झा
54.
माता जकाँ देहसँ ल’ क’ हृदय लगाबय
भरिसक हमरे दुख लखि सदिखन नीर बहाबय।
एकर बात मानब पुरुषक कर्त्तव्य निमाहब
पतित हयब बरु कृतज्ञताकेर जल अवगाहब॥
55.
ई बिचारि हम बजबो कयलहुँ जल फल खयलहुँ
जेना कहय ई तहिना रहि दुखमे सुख पओलहुँ।
दिन दिन रुचिगर फल पकमानो आनि खोआबय
जननी जकाँ वदन चूमय खन कण्ठ लगाबय॥
56.
बड़ नेहे पालै छल पहिलुक बात पुछै छल
हमरा पुछने कनिओ नहि निज मर्म कहै छल।
क्यो देवी निज सम्बन्धी थिक शंका रहले
घुमा फिराक पुछलोपर ई नहि किछ कहले॥
57.
चारि मास एकरा लग एहिना समय बितओलहुँ
आइ भोरमे नीन छोड़ि जहिखन हम उठलहुँ।
देखल सभ्य समाज चतुर्दिशि मुनि मण्डल छल
भीलक पक्वा उनटि तपोवन ऋषिक बनल छल॥
58.
लेहक कारी खुन्झा पिजड़ा जे कन्हकै छल
सैह स्वर्णमय भेल सूर्य किरणे चमकै छल।
शीर्ण वस्त्र जे भिलनी खटखट मैल सनलि छलि
जकरा देखल भूप, सैह अप्सरा बनलि छलि॥