कादम्बरी / पृष्ठ 152 / दामोदर झा
59.
कतबो पूछल चौंकि भेद ई नहि किछु कहलक
झट पिजड़ा उठबओलक तुरत एतय लय अनलक।
अही जकाँ अनभिज्ञे हमहूँ छी एकरासँ
क्यो नहि उत्तर देलक हम पुछलहुँ जकरासँ॥
60.
एतबा कहि वैशम्पायन शुक निज मुखके मुनलनि
अजगुत बुझि शूद्रक राजा चौंकल सन सुनलनि।
लगले उठला प्रतिहारीकेर लग जा कहलनि
आनह ओहि चण्डालिनिके सूगा जे अनलनि॥
61.
थोड़बे कालक बाद प्रतीहारी संग आयल
अतिथि भवनसँ ओ कन्या वचनो मुख लायल।
हे रोहिणीरमण हे शशधर, हे नभमण्डन,
चन्द्रापीड़, भूप शूद्रक, कादम्बरि जीवन॥
62.
अपन एकर सब पूर्व कथानक सुनबे कयलहुँ
सुमिरन तकर करयबा लय एकरा हम अनलहुँ।
हम लक्ष्मी छी एही अभागलकेर जननी छी
निजकृति ई दुख सहय एकर दुख हम कनना छी॥
63.
पितृ आज्ञा अवमानि महाश्वेता दिशि चलले
जहिखन ई मुनि श्वेतकेतु क्रोधित भय कहले।
हे इन्दिरा, अहाँक तनय चंचलता धयलक
आज्ञा हमर उपेखि अपन इन्द्रिय कथ कयलक॥