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कादम्बरी / पृष्ठ 153 / दामोदर झा

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64.
ककरहुँसँ पकड़ाय बानि राखू अपना लग
नहि तँ बेसी कष्ट सहत निज दोषे ई खग।
गुरु आज्ञा भंगक पापोचित कष्ट सहायब
सावधान रहि अनुशासनकेर विनय गहायब॥

65.
यावत् एहि यज्ञक पूर्णाहुति हम नहि करबे
तावत ओकरे संग अहाँ भूलोके रहबे।
ते एकरा पकड़ाय बिनय पिजड़ामे रखलहुँ
निर्घिन मानस कष्टे प्रायश्चित करओलहु॥

66.
जन सम्पर्क तजै लय चण्डाली बनि रहलहुँ
भेल कपूत संगहि एकरा अपनहुँ दुख सहलहुँ।
मुनिक यज्ञ सम्पूर्ण भेल पूर्णाहुति देलनि
सभक दक्षिणा दय अवभृथ स्नान ओ कयलनि॥

67.
आइ अहूँके कहलनि सुमिरन करबा दै लय
ई शरीर तजि राखल पूर्वक देह गहै लय।
पूरल दुहुकेर शाप पाप एके कालहिमे
पड़ल छलहुँ दुहु विधि विधान माया जालहिमै॥

68.
दुहुक प्रेयसी घोर तपस्या करथि अहर्निशि
भय दयालु अपनो सुखलय ताकू तनिका दिशि।
ई कहि ओ गहना झनकारे अम्बर उड़ल
फूलक मालाकेर पराग चारू दिशि झड़ले॥