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कादम्बरी / पृष्ठ 160 / दामोदर झा

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19.
चन्द्रापीड़ कहल एहि तनुसँ छी जमाय से बात बिसारू
मित्र छलहुँ दोसर शरीरसँ से व्यवहार हृदयमे धारू।
तीन बेर जनिका लय मुइलहुँ सैह अबै छथि ताहि सम्हारू
किंकर्तव्यविमूढ़ चरण नहि चलनि दौड़ि जा कष्ट उसारू॥

20.
एतबा सुनि हुनका दिशि ताकल पुण्डरीक भरि पाँज पकड़लनि
लाजे ओ संकोच करै छलि तैओ खींचि हृदयमे जड़लनि।
प्रणय बन्धसँ छटि महाश्वेता प्रियतमक चरण दुहु धयलनि
भेटल शिवक प्रसाद तपस्या सब विधि पूरल से मुख कहलनि॥

21.
हर्षे निर्भर अथ उत करितो कादम्बरक इशारा पओलक
मदलेखा गन्धर्वलोक केयूरकके अगुताय पठओलक।
अपने दौड़लि हर्षे बेसुधि तारापीड़ नृपालक आश्रम
मुहसँ बोल बहार न होइ छल पयर पकड़लक सभक यथाक्रम॥

22.
लागल छला भूप मृत्युंजय जपमे गिरिशक पूजा करितो
सब समापि लगले बहरयला एकरा की छौ की छौ कहितो।
धयलक पयर कहल एहिखन युवराज जेना सुति के उठलाहय
कादम्बरी हृदय प्रमुदित कय अमृते सनक बचन बजलाहय॥

23.
हाथ कपिंजलकेर धयने वैशम्पायन नभसँ अयलाहय
जल्दी सब क्यो च ओतय बड़आनन्दक सनेस लयलाहय।
सुनिते राजा बेसुधि भेल बिलासबती केर गरदनि धयले
मनोरमा केर हाथ पकड़ने शुकनासो लगले बहरयले॥