कादम्बरी / पृष्ठ 161 / दामोदर झा
24.
सब क्यो बूढ़ अशीतर तैयो दौड़थि बालक सन उत्साह
खसथि पड़थि उठि-उठि पुनि धाबथि गाय जेना बच्छाक निङाहे।
अयला कादम्बरीक आश्रम लगमे झटझट पयर बढ़यले
चन्द्रापीड़ निरखि दूरहिंसँ दौड़ल आबि चरण शिर धयले॥
25.
तारापीड़ उठा हुनका भरि पाँज पकड़ने हृदय लगलओनि
बहुत दिवससँ भेल तपस्वी शिव आराधन केर फल पओलनि।
दुहु थन चुबनि दूध विलासवती सुतके कोरामे लेलनि
शिर मुख पर चमथि अनेक विधि गरदनि धय अलिगन कयलनि॥
26.
शुकनासहु केर चरण कमल पर चन्द्रापीड़ जाय शिर राखल
झट उठाय छातीमे जड़ितो युग युग जीबू ई ओ भाषल।
मनोरमा पद पर शिर रखिते पकड़ि कुमरके कोरा अनलनि
हाथ पीठ पर हर्षे बेसुधि स्वयं पता नहि की की कहलनि॥
27.
पुण्डरीके हाथ पकड़ने चन्द्रापीड़ निकट लय आनल
श्वेतकेतु मुनि केर प्रभावसँ वैशम्पायन सब क्यो जानल।
शुकनासक ओ पद दुहु पकड़ल पहिनहि सन अन्तर किछ नहि छल
मनोरमा थन दूध चअबिते धय कोरामे रखलनि निश्छल॥
28.
ताबत आबि कपिंजल कहलनि श्वेतकेतु मुनि ई कहने छथि
हम पालक छी तदपि अही पर नेह पिताकेर ई रखने छथि।
ते अपनेक निकट ई रहता हम अपना लग नहि अनबायब
केवल अपन देह तजलापर पुत्रक फल हिनकासँ पायब॥