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कादम्बरी / पृष्ठ 162 / दामोदर झा

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29.
ई कहि नभ पथ उड़ल कपिंजल सब हर्षाश्रु आँखि बहबै छल
हेमकूटसँ गन्धर्वक वाहन सहसु बेछोह अबै छल।
हंस चित्ररथ गौरी मदिरा शत शत दासी दासक संगे
आबि उतरला लग वाहनसँ सब देखथि आनन्द तरंगे॥

30.
सब क्यो सबसँ मिलय परस्पर दुहु गन्धर्वराज उर लयला
शुकनासो तारापीड़हुके बड़ आनन्दक उदधि समयला।
गौरी मदिरा ताकि परस्पर अपना दुहु समधिनसँ मिलली
मनोरमा आनन्द बिभोर विलासवती अति मोदे भरली॥

31.
आठो समधिन समधि संग मिलि धीया पूता दिशि चलि देलनि
ओतय जाय सबके प्रसन्न लखि भूषण वस्त्र निछाउरि कयलनि।
कादम्बरी महाश्वेता दुहु अपना माय बापसँ मिलली
सब क्यो हिनका हृदय लगाबथि ई दुहु हर्षक उदधि समयली॥

32.
भीड़ भाड़ चहुदिशि झौहरि दल की करु सब सब उत छल पड़ले
छस सबार सङ लेल बलाहक हर्ष कहय उज्जयिनी गेले।
हंस चित्ररथ कहलनि तारापीड़ भूपके नगर चलै लय
हयत विवाह युगल दम्पतिकेर अपना करहि सोहागो दै लय॥

33.
तारापीड़ नृपपि शुकनासो कहलनि हम सब आश्रम धयलहुँ
जनपदमे जायइ नहि एतहि सब किछ अपन नयन फल पओलहुँ
दुहु जमाय लय जाउ अहाँ सब नगर विवाह महोत्सव करबे
दुहुके दुहु अभिमत पति भेटल दुहु दुहिताकेर माङो भरबे॥