49.
शूद्रक देहहुँ सेवालय हम जायब कहि पुनि पुनि हठ कयलनि
बहुत कहल ते ओहि ठाँ रहली मन तँ हमरे संग पठओलनि।
चन्द्रलोक जायब हमरा सङ ततय अहाँकेर स्वगात करती
ताही रूपे गरदनि धय बड़का आनन्द हृदयमे भरती॥
50.
एतबा कादम्बरी सुनल चौंकल मन रोहिणीक गुण सुमिरथि
हुनक उदारभाव सेवारस सरल चालि बुझि मनमे कुहरथि।
नेह भरल पतिधर्म निमाहब सोचि ‘हमर सब गप्पे’ कहले
अपनामे ओ गुण नहि पाबथि की बजती गुनि चुप्पे रहले॥
51.
एहिना चन्द्रापीड़ चन्द्र आनन्द विनोदे समय बिताबथि
कहियो हिनका सभक संग रस रंगे हेमकूट पर आबथि।
अच्छोदक तट जनको सुख दय प्रमुदित विपिन विहारो कयलनि
चन्द्रलोक कहियो कहियो जा रोहिणीक मन मोदो भरलनि॥
52.
पुण्डरीक सङ लक्ष्मीकेर सरमे जा बिलसथि
जन रंजन करबा लय घुरि उज्जैनो निबसथि।
चन्द्रापीड़ चन्द्र अवतारी धर्म बसाबथु
से भारतवर्षक सब दुख दारिद्रय नसाबथु॥