कादम्बरी / पृष्ठ 27 / दामोदर झा
54.
पारस देशक भूप उपायनमे ई अनलनि
तीनू पुर बेजोड़ एकर एबटा गुण कहलनि।
चन्द्रापीड़ो देखि तुरगकें विस्मित भेले
घोड़ामे ई गुण नहि हो से मन गुनि लेले॥
55.
क्यो स्वर्वासी ककरो शापे तुरग बनल अछि
अनुदरजन्मक समाचार एकरे संबल अछि।
रम्भा घोड़ी बनलि शापसँ से सुनने छी
नलकूबर छल गाछ नन्दगृहसे बुझने छी॥
56.
एतबा मनहिं विचारि वस्त्र आभूषण पहिरल
गुरुजन केर आशीष हेतु चरणहुँ पर नमरल।
वैशम्पायन जखन आन घोड़ापर चढ़ला
राजकुमारो तखन ताहि तुरगहि दिशि बढ़ला॥
57.
हाथ जोड़ि ई कहलनि अपने जे छी से छी
चढ़बा केर अपराध छमा याचना करै छी।
सुनिते घोड़ा हिनहिनाए जनु अनुमति देले
चन्द्रापीड़ो भय सबार पुरमारग लेले॥
58.
इन्द्रायुधक पीठ पर ओ नहि मोद समायल
सोचल त्रिभुवन राज्य हाथ हमरो चल आयल।
पाछ आबय घोड़ा हाथी ऊँटक लसकर
राजकुमार सबार एकसँ एक मनोहर॥