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कादम्बरी / पृष्ठ 2 / दामोदर झा

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4.
नवविवाहिता वधू जतय पतिकरसँ जँ छुटै छल
मणिमय दीप मिझयबालय व्यर्थे कपार पीटै छल।
मणि कुण्डलकेर प्रभा मानिनी गाल उपर पसरै छल
क्रोधे लालवदन लखितहुँ पतिमान तकर बिसरै छल।।

5.
रुचि1 छल जतए सतत मणिगणमे, नहि परतिय चम्बनमे
श्यामलता2 क्राड़ावनमे छल, नहि एकोजन मनमे।
छल कलंक शशिमण्डलमे, नहि श्रुतिगामी शुचि कुलमे
मधुपराजि3 नहि जनपदमे छल, केवल सुमन-मुकुलमे।।

6.
छल प्रतिकल 4नदीक बहुत जन नहि निज कुल व्यवहारक
कटुमुख छल मेरचाइक खयने, नहि विषवचन उचारक।
छल सद्वेष5सकल जन, किन्तु न कतहु पड़ोसीघरमे
तामसभाव6 रातिमे छल, नहि नगरक एको नरमे।।

7.
जतय कालिमा काजरमे छल, चंचलता चलदलमे
बन्धन अपन प्रिया-भुज-पाशक, निशि मालिन्य कमलमे।
पराधीन सूगा पिजड़ाकेर कृशता विरही जनमे,
बिज्जी सब डरपोक जतय छल पतन पुरान सुमनमे।।

8.
हारि जतय छल सुरत-समरमे गारि नवोढ़ा-स्वरमे
मारि एकटा फूल विशिख केर, जारि विरहि-अन्तरमे।
धारि जतय छल ऋण7 तीनू केर, रारि कीर्ति बढ़बैमे
टारि8 जत अधलाह चालि9 केर, खारि शास्त्रा पढ़बैमे।।

1. कान्ति तथा इच्दा, 2. कारी लती तथा मालिन्य, 3. भ्रमर तथा मद्यपायी, 4. तटमे तथा विरुद्ध, 5. सुन्दर वेष भूषावाला तथा द्वेषयुक्त, 6. अंधकार तथा क्रोधी स्वभाव, 7. पितृ ऋण, ऋषि ऋण, देव ऋण, 8. संघर्ष, 9. ईर्ष्या