कादम्बरी / पृष्ठ 31 / दामोदर झा
9.
स्नानादिक समापि अपनाघर राजकुमार छला सुख बैसल
कन्या एक संगमे लेने तावत बूढ़ कंचुकी पैसल।
हाथ जोड़ि कहलक अपनेकेर माता रानी मोहि पठओलनि
परिचारिका एक निशिवासर सेवा हेतु दैत पुनि कहलनि॥
10.
नाम पत्रलेखा तनुजाता अछि कुलूत भूपक हम पायल
बापक राज्य नष्ट भेलासँ बन्दी लोकक सङ छल आयल।
अपना बेटी जकाँ नेहसँ पालि-पोसि हम पैघ बनायल
योग्य अहाँक हयत दासी ई बुझि एतय एकरा पहुँचायल॥
11.
शिष्या जकाँ सिखाय काज सब एकरा सेवा योग्य बनायब
नेना अछि ते छमा करब हमरागुनि एकर दोष जे पायब।
ई कहि कंचुकि बिदा लेल पुनि चन्द्रापीड़ एकर दिशि देखल,
चालि-ढालि लखि बात-चीत कय एकरा बुद्धिमती अवलेखल॥
12.
ई तहियासँ निशि-दिन सेवे राजकुमारक हृदय समायल
पानक डिब्बा रखबा केर अधिकारक सङ सम्मानो पायल।
अपन परिश्रमके नहि गणिते सदिखन हिनके काज करै छल
सब अनुकूल आचरण हो ते निज सुविधा भोजन बिसरै छल॥
13.
किछै दिन राजकुमार मित्र मण्डलमे सुख सँ समय बितयलनि
राजा केर मनमे विचार युवराजक पद देबा लय अयलनि।
शुकनासहुसँ लय बिचार सम्भार संग्रहक यत्न करओलनि
चारि समुद्रक बारि मृत्तिका आदि अनैलय दूत पठओलनि॥