Last modified on 25 अक्टूबर 2013, at 18:26

कादम्बरी / पृष्ठ 34 / दामोदर झा

24.
छै छथि सब टा भार पिता भय सावधान सब काज सम्हारू
जीतल धरती जनकहिसँ तकरा दोहरा निज नाम प्रचारू।
राजसुतक कल्याणभावना भुत शुकनास वचन बिरमओले,
चन्द्रापीड़ हुनक उपदेशहिं जनु सभ भाँति अलंकृत भेले॥

25.
तदनन्तर शुभ दिवस देखि नृप् सब प्रकार उत्सव करबओलनि
मंगल घट अभिषेक करा सुतके सिंहासन पर बैसओलनि।
स्वयं छत्र धारण कय मन्त्रीगणसँ चामर व्यजन करओलनि
सब राजा गण आबि चरणपर अद्भूत रत्न उपायन देलनि॥

26.
युवराजक अभिषेक महोत्सव जन्महुसँ शतगुण बढ़ि गेले
प्रजावर्ग आनन्दमग्न छल सब घर बड़का पाबनि भेले।
सब दिशिसँ अयला ब्राह्मणगण वेद मन्त्र आशीष उचारथि
हाथी, घोड़ा, स्वर्ण दक्षिणा लय-लय जाथि जते जे पारथि॥

27.
पुनि युवराज प्रशंसित दिनमे दिग्विजय तैयारी कयलनि
पाबि नृपाज्ञा प्रस्थानक शुभ मंगल होम जाप करबओलनि।
सब विधानविद पुरोहितक संग अस्त्र-शस्त्र केर पूजा कयलनि
प्रचर दक्षिणा पाबि विप्रगण वेदस्वर स्वस्त्ययन मनओलनि॥

28.
यत्न निरुद्ध नोरबाली माता प्रस्थानक मंगल कयलनि
भेरी शंख नगाड़ा धुनिसँ सकल दिशा मुखरित भय गेलनि।
मागध सूत भाट बन्दी जन जोर जोरसँ कवता पढ़ले
मातु पिता शुकनास चरणरज लय कुमार बाहर दिशि बढ़ले॥