कादम्बरी / पृष्ठ 36 / दामोदर झा
34.
टुटलो मन्दिरके बनबाबथि मरुथलमे पोखरि खुनबै छथि
सब राजाक उपायन धनके लादि-लादि ऊँटहि अनबै छथि।
पुनि सबटाके वितरण करिते सकल दरिद्रक भवन भरै छथि
साधु जनहि धनसँ सम्मानथि ब्राह्मणकेर दारिद्रय हरै छथि॥
35.
ठाम-ठाम पर नामांकित आदेश पाथरक खाम्ह गड़ाबथि
अवनत राजा सबके तोषथि सबसँ मित्रभाव दरसाबथि।
एहिना तीन वर्षमे क्रमसँ सौंसे धरतीतल मे घूमल
गजवाहिनी हिनक चारू सागर वेलावनमे छल झूमल॥
36.
पहिने पूब दिशाके जीतल तदनन्तर दक्षिण से गेले
क्रूरदृष्टि वा कृपादृष्टि लय सब नृप आबि राज कर देले
पश्चिम देशक सब नरनायक नायक बुझि हिनका लग गेले
उत्तर भागक जे राजा छल डरहिं सकल शरणागत भेले॥
37.
पूर्वोत्तरमे हेमजटा जातिक किरात-गण बसए भयंकर
ताहि सुवर्णपुरहुँके जीतल शरणागत कय लेल राज-कर।
आगू कैलासक सीमामे भूमि दहोदिशि परम मनोहर
युद्धक थकनी शान्त करैलय सुखसँ ततय रहथि किछु वासर॥
38.
कोनो दिवस शिकार लालसे इन्द्रायुधपर चढ़ि बहरायल
सय दू सय सबार हिनका सङ अस्त्र-शस्त्र निपुणो मरड़ायल।
नर-मुख घोड़ा सन शरीर वनमे दुइटा किन्नर अवलोकल
तकरा धरबा लय उत्सुक भय पाछ इन्द्रायुधके फेकल॥