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कादम्बरी / पृष्ठ 52 / दामोदर झा

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49.
जे किछ अछि कहबाक अशंकित भय अपने सब भाखू
हमरहुँ पर संकोच विवर्जित मति दासी सन राखू।
कहलनि तखन कपिंजल नामक बालमित्र हुनकर छी
हम अयलहुँ जे वचन कहै लय नहि अभ्यस्त डगर छी॥

50.
कतय शान्त मुनि जन ई पथ विद्वज्जनताक हँसल अछि
मित्रक नेहे तैयो कहबे भ्रमिमे नाव फँसल अछि।
जे सब भेल समक्ष अहाँ केर से सबटा जनिते छी
तकरा बाद भेल जे किछु से राजकुमारि, कहिते छी॥

51.
मुक्ता हार हाथमे रखने हमरा निकट पहुँचला
हमहूँ हँसिके कहलहुँ अनलहुँ बड़ सुन्दर जपमाला।
एतबा कहि किछ प्रणयकोपसँ हम अन्तय चल गेलहुँ
तखन अहाँ केर चल अयला पर मन विचार ई कयलनि॥

52.
अनुचित काजक लाज भारसँ कतहुँ अनिष्ट करथि ई
छोड़ब संग उचित नहि अछि नहि एसगर कतहु रहथि ई।
एतबा सोचि परागत भय हम हुनका कतहु न देखल
व्याकुल चित्त सरोवर तट दिशि लताकुंज सब पेखल॥

53.
आगू एक लता मण्डपमे फटिक शिला सुन्दर छल
बैसल ततय हार मोती उर मूर्ति जेना पाथर छल।
बाहर होश-हबास शून्य छल केवल आँखि जगै छल॥
ब्रह्मानन्द समाधि लगओने योगी जकाँ लगै छल॥