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कादम्बरी / पृष्ठ 63 / दामोदर झा

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10.
जहिना यौवन एकर सुरभिऋतु अम्बुज जकाँ बढ़ै अछि
तहिना चिन्तालता चित्ररथहृदयक गाछ चढ़ै अछि।
हमरा ओ संवाद पठओलनि बेटी, आबि उबारू
विषय अहाँक बिचारि मरै छी दोसर अयल सम्हारू॥

11.
कादम्बरी दुराग्रह छोड़य हमर कथा मन लाबय
करू प्रयत्न विवाह करय ई उजड़ल भवन बसाबय।
ततय पठओलहुँ आइ तरलिकाके ओकरे बुझबैलय
दुइ माता पितु केर अवलम्बन ओ अछि से सुझबै लय॥

12.
ओकरा बुझा सुझा के प्राते काल्हि एतय ओ आओत
कादम्बरी कहलकै की की सबटा कथा सुनाओत।
बातेचीत महाश्वेता आश्रममे दिवस बितओलनि
चन्द्रापीड़ साँझ बुझि सायंकृत्य अपन सव कयलनि॥

13.
इन्द्रायुधके आनि ततय कोनो गाछक जड़ि बन्हलनि
जतय महाश्वेता कहलनि निज पातक सेज बनओलनि।
चन्द्रापीड़ पड़ल शय्या पर यदपि छला बड़ थाकल
अजगुत सुनि आख्यान छलनि मन जेना आगिमे पाकल॥

14.
वैशम्पायन सेना नृपगण हमरालय निशि जगते
हमरा विना पत्रलेखा भोजन जल सब किछु तजते।
एतय अतकिंत थल मे अयलहुँ दैवे मार्ग देखओलनि
ई सब चिन्तन करिते करिते जगले राति बितौलनि॥