भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कादम्बरी / पृष्ठ 73 / दामोदर झा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

60.
एकर नाम छै शेष वरुणके रत्नाकर पहिरओलनि
वरुणो पुनि गन्धर्वराजके से तनयाके देलनि।
एकर पहिरबा योग्य अहाँ छी एक मात्र ई जनलनि
ते राखल जोगाय क’ एकरा कादम्बरी पठओलनि॥

61.
एतबा कहि ओ हार मनोहर हिनका गरमे बन्हलक
हारो चन्द्रापीड़क मुखमे कान्ति सहस गुन अनलक।
चन्द्रापीड़ कहल हम रहबनि अति कृतज्ञ आदर केर
बड़ उदारता जना रहल छथि जे एहि तुच्छो नर केर॥

62.
कादम्बरी पं्रसगे बहु छन बातचीत मृदु कयले
पुनि गमनक प्रणाम कय दुहु उठि मुदित हृदयसँ गेले।
किछुए कालक बाद महाश्वेता केर हाथ पकड़ने
राजकुमारी अयली अपनहि नम्र भाव वपु जड़ने॥

63.
उठला चन्द्रपीड़ चेहाक किछु पद आगू देलनि
स्वागत भाव जनाक ताही शिला उपर बैसओलनि।
उज्जैनक प्रस्ताव चला से सब हिनका मुह सुनलनि
तारापीड़क वैभव शासन ठाठ-बाठ मन गुनलनि॥

64.
किछु छनमे उठि स्वयं ततय हिनकर सुख शय्या देखल
केयरकके हिनक निकटमे सतै लय आदेशल।
गमनक नमस्कार कय जाइत पुनि पुनि घुरि घुरि देखथि
कादम्बरी कुमरके धृततनु कामदेव अवलेखथि॥