65.
चन्द्रापीड़ जाय शय्यापर सूतै लय मन कयलनि
केयूरक मृदु चरण दबाबय अति सिनेह सुख भेलनि।
तावत सुमिरल दरसन छनसँ कादम्बरिक बिलासे
हावोभाव कटाक्ष विलोकन विनु कारा केर हासे॥
66.
सोचल कादम्बरीक ई गुण सबटा स्वाभाविक थिक
अथवा हमरा देखि विवध अछि कामदेव केर कृत थिक।
ताकय हमरा करुण भावसँ तकला पर मुह मोड़य
आन काज करबाक बहाना हमरा दिशि कर जोड़य॥
67.
बिनु कारण लखि हँसय अङैठी मोड़य कर उर राखए
सखिक कान लग मुह लगाय हमरहि लय किदु किदु भाषय।
अर्पण करय अपन वैभव केर जे किछ सार पबै अछि
हमरा स्वागतमे अपनहि सब परिजनके लगबै अछि॥
68.
दृष्टि हिनक दूती सन उरमे प्रविशि रहस्य कहै अछि
छथि प्रसन्न विनु पूजा कयनहुँ मनसिज चित्त गहै अछि।
अथवा सब कल्पना वृथा ई निज सौन्दर्य मदक थिक
हम अपना के पैघ बुझै छी युवराजहुक पदक थिक॥
69.
देव जाति गन्धर्व कतय हम मृत्यु भुवन केर नर छी
दुहुक हयत संयोग कोना हम बुझबामे पामर छी।
संभावना अपन दुरलभे मनोरथ गाछ चढ़ओलक
बात असम्भव लय मानसके घिरनी जकाँ नचओलक॥