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कादम्बरी / पृष्ठ 79 / दामोदर झा

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15.
अयलहुँ दूर अहाँ नहि धूरा उड़ल लखायल,
बड़ी कालपर उतरलि जनु छल रत्न हेरायल।
किछु छनमे क्रीड़ागिरिके मणिमन्दिर गेले
सब ठाँ निरखल जतय अहाँ देहस्थिति कयले॥

16.
ककरहुसँ नहि बाजथि सदिखन नोर बहाबथि
उठि अन्तए चल जाथि केओ जँ लगमे आबथि।
सायंकाल महाश्वेता केर कहने सुनने
खायल दू टा कओर ततहु छलि लोचन मुनने॥

17.
शय्यापर जा खसलि देहमे छल दाहज्वर
सखि सब सेवा करय भेल नहि निन्दक अवसर।
प्रातहिं बजा महाश्वेता हमरा ई कहलनि
आनू हुनक उदेश हमर सन्देशो कहबनि॥

18.
ओ अछि धन्य अहाँसँ जकरा परिचय नहि छै
गुण अहाँक बनि शूल वियोगक दुख नहि दै छै।
उसरल उत्सव जकाँ एतय गन्धर्वनगर अछि
काल्हुक दिनके सुमिरि बनल शोकक सागर अछि॥

19.
कादम्बरी स्वस्थ नहि छथि ते विनय करै छी
पनि अयबा केर एतय कष्ट अपनेके दै छी।
हमरासँ परिचय दण्डमे एतबा सहबे
पाछ माङब छमा हमहुँ जे अपने कहबे॥