कादम्बरी / पृष्ठ 82 / दामोदर झा
30.
अस्फुट स्वरसँ कहल देवि, बेसी की कहबे
गुणसँ हमरा कीनल सब दिन सेवक रहबे।
हमरा योग्य निदेश बिना संकोच पठायब
जतय रहब सब काज छोड़ि हम लगले आयब॥
31.
एखन जाइ छी सेनामे ई कहि चलि देले
फाटक धरि सब बालागण अनुगामी भेले।
छला कुमर इन्द्रायुध मग चढ़बा लय तत्पर
पाछसँ आयल मदलेखा कहलक सत्वर॥
32.
देवी एतय पत्रलेखाके रहय कहै छथि
नव परिचय अनुराग बढ़ल छनि विनय करै छथि।
किछु दिन रहि अपनेक निकट पाछू चल जायत
तावत रोगक विकट दशामे हृदय जुड़ायत॥।
33.
कहलनि ओकरा राजकुमार धन्य जीवन छौ
एखन बुझलिऔ पुरबिल तोर पुण्य पावन छौ।
जे जल्दीसँ हृदय खोलिके सेवा करिहन
कौखन लखि शुभ अवसर हमरो स्मरण करबिहनु॥
34.
कयलनि बिदा पत्रलेखाके ई सब कहि क’
अपने चढ़ला इन्द्रायुधपर आगू बढ़ि क’
केयूरक सङ अन्य अश्व चढ़ि गप्प करै अछि
राजकुमरिके सुमिरि कुमारक अश्रु झरै अछि।