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कादम्बरी / पृष्ठ 86 / दामोदर झा

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50.
ओकरासँ कय गप्प अपन मन रंजन कयलनि
कादम्बरी वियोगे व्यथित हृदय बहलओलनि।
चहु दिशि पहरादार मध्यमे सब जन सुतला
सुमिरन कय कादम्बरीक ई जगले रहला॥

51.
भोरे उठि बुढ़बा धार्मिकके निकट बजओलनि
ओकर मनोरथसँ कुमार बेसी धन देलनि।
सकल शरीरक कृत्य समापि बिदा भय गेले
वनसँ बाहर भय जनपद केर मारग लेले॥

52.
अयला राजकुमार, कतहु कतहु मग वास कय।
उज्जयिनी दरबार, देखि उतरला नृप भवन॥