कादम्बरी / पृष्ठ 92 / दामोदर झा
25.
तखन महलिअनि धैर्य धरू हम हुनका आनब अपनहिं जाय
मेघनाद अच्छोदक तट छथि पहुँचयबा केर करू उपाय।
कहलनि अही प्राण रक्षक छी नहि जँ रहब कोना हम जीब
जे रुचि मानय करू अहाँ जँ देरी करब जहर हम पीब॥
26.
एतबा हुनका कहिते उठलहुँ केयूरक केर सङ सङ आबि
मेघनादके पुनि सङ कयलहुँ झटपट अयलहुँ मगमे धाबि।
नव अनुराग भावसँ कोमल नूतन लता जकाँ हुनि गात
विरह दवागि बीच जरबै छी किए छोड़ि चलि अयलहुँ कात॥
27.
फुरत अहाँके जे से करबे, हमरा कहलासँ की हयत
अछि सन्देह चित्तमे ई जे औखन हुनकर जीवन हयत।
एतबा कहि ओ सिसकय लागल कानल आँचरसँ मुह झाँपि
चन्द्रापीड़ो सब विवरण सुनि सोचथि बात हृदयसँ काँपि॥
28.
नहि उपाय कोनो सूझै अछि चूपचाप जँ जाएब भागि
लगले शोके माता मरती पिताक उरमे लगतनि आगि।
सबटा प्रजा चतुर्दिशि दौड़त वन पर्वत सब लेतै छानि
हम नहि भेटबै घुरि घर अओतै माथ पीटि सब मरतै कानि॥
29.
कोन बहाना करब जाइ लय देता की कहने अवकाश
पिता हमर छथि पूज्य निदेशक हमरा पर हुनकर सब आश।
जँ कनिजो चंचलता करबे हयते सबटा भेद प्रकाश
हमरा जे सत्पुत्र बुझै छथि लगले हुनक उठत विश्वास॥