भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कादम्बरी / पृष्ठ 93 / दामोदर झा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

30.
राजकुमार बिचारथि सदिखन कतहु न पाबथि दुःखक थाह
किंकर्त्तव्यविमूढ छला ई कतहु केयो नहि दै छल छाह।
सोचथि ई कुमार निशिवासर उड़ि जायब किंपुरुषक देश
पाँखि विधाता नहि देने छथि घोड़ा धरय विमानक वेश॥

31.
कौखन मनमे चैन न पाबथि साँझ प्रात दिन राति समान
भरल आँखि उत्तर दिशि देखथि हरिण जेना हो लागल छान।
कहथि पत्रलेखाके एहिमे अपराधी देवीक निदेश
ठाढ़ छलहुँ आज्ञा पालैलय हम नहि किछ देलनि आदेश॥

32.
ळुनकर लज्जा दोषी अछि मदलेखो जँ किछ कहितय आबि
कनहुँ लग तँ करितहुँ पूर्ण मनोरथ लगले आज्ञा पाबि।
एहिना समय बिताबथि कहुना सोचथि जयबा केर प्रकार
सदिखन करय पत्रलेखा कामज्वर केर ठण्ढा उपचार॥

33.
एक दिवस किछु घोड़सवार सङ बाहर घुमबा केर मन भेल
बतचीत मन रंजन करिते शिप्रातटक मार्ग धय लेल।
देखल धूरि उड़य उत्तर दिशि आबय एम्हरे बहुत सवार
परिचय लै लय दूत पठओलनि अपने कयलनि शिप्रा पार॥

34.
कार्तिकेय केर मन्दिरमे जा बैसलाह दरबार लगाय
केयूरक आयल सवार सङ धयलक माथ कुमर लग जाय।
लगले उठा हृदय मे जड़लन्हि ओकरा अनलन्हि अपना वास
खान पीनसँ पथ श्रम हरलनि भेला कुमर किछुहृदय हुलास॥