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कादम्बरी / पृष्ठ 94 / दामोदर झा

35.
लेलनि संग पत्रलेखाके केयूरकके अनलनि कात
कादम्बरी कोना छथि पूछल हमरा लय की कहलनि बात।
लगहिं पत्रलेखा दिशि देखल सुनिते कहलक आँखि घुमाय
ई अपनेके नहि किछु कहलनि देखै छली हृदय लग जाय॥

36.
जँ कहल निसबटा सुनलो पर रहलहुँ बैसि बुझि अनठाय
व्यर्थे तखन एतय हम अयलहुँ मारग मे जी जान लगाय।
चन्द्रापीड़ लजा क’ कहलनि करू न कटला पर आघात
जे किछु भेल सम्हारल तैयो आगू कहू एम्हुरका बात॥

37.
हाथ जोरि केयूरक कहलक झूठ कहब तँ होयत पाप
ओ हमरा नहि किछु कहने छथि मदलेखो कयलक अपलाप।
जल भरि आँखि निहारथि हमरा ताहीसँ कहलनि निज हाल
सब क्यो अहाँ एतय जिबिते छी हमरा मनसिज करय बेहाल॥

38.
लगले उठि हम अश्व पकड़लहुँ क्यो नहि किछु देलक आदेश
निशि दिन चलि मग पूछि पहुँचलहुँ कहुना एतय अहाँ केर देश।
हुनकर जीवन मरण यथारुचि जे किछ करी अहीं केर हाथ
एतबा कहि दृग नीर बहबिते धड़फड़ाय पद रखलक माथ।

39.
चन्द्रापीड़ उठा क’ ओकरा अपना करसँ पोछल नीर
कहलनि धैर्य धरू जयबा लय हमहुँ लगायब सब विधि जोर।
पुनि केयूरकके सुखसुविधामय निवासमे रखलनि आनि
सोचथि जयबा केर बहाना बिनु कहने गेने अछि हानि॥