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कादम्बरी / पृष्ठ 96 / दामोदर झा

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45.
जउ पत्रलेखाके सङमे लेने ई हयतनि अवलम्ब
ई तावत आश्वासन देतनि जँ हमरा किछु हयत विलम्ब।
हिनके सङ सङ तो आगू जो धैर्य पत्रलेखा, उर धारि
पथमे नहि उत्कण्ठित होइहएँ हमरा बिनु ले हृदय सम्हारि॥

46.
निज शरीर परिचर्या करिहे ठाम ठाम पथमे गति रोकि
केयूरक, जँ ई अनठाबय करबायब एकरासँ टोकि।
ऐव महाश्वेता केर आश्रम धरि हमरा लय जयबा लेल
एकरहु अपना सङमे लायब रहत ओना उत्कण्ठित भेल॥

47.
एतबा कहि केयूरककेर वस्त्राभूषणसँ कयलनि मान
हीरा मोती जड़ि पगड़ी दय मणि कुण्डल पहिरओलनि कान।
सब सबार संग चढ़ल अश्व पर केयूरक कयलक प्रस्थान
अश्वतरी पर चलल पत्रलेखा जनु कुमर पठओलनि प्रान॥

48.
मेघनाद जे तनय बलाहक केर बड़का छथि सेनानाथ
तनिका कहलनि मारगमे रक्षा केर भार धरू निज हाथ।
अनबा हेतु पत्रलेखाके ओतय जाहि हम रखलहुँ ठाम
ततबा धरि पहुचायब एकरा हमहुँ ऐब किछ कय विश्राम॥

49.
इन्द्रायुध चढ़ि शिप्रा तट धरि अपनहिं जाय देल अरियाति
ततबा पथ कादम्बरीक अनुनय सन्देश कहल बहु भाँति।
नदी पार भय ओ सब गेले जखन लखायल नहि पद धूरि
लय निःश्वास अश्वके मोड़ल कोनहुँना पथ धयलनि घरि॥