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कादम्बरी / पृष्ठ 9 / दामोदर झा

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40.
आन-आन पक्षिक मुखसँ कण खसल रहय शाखा पर
फलहुक टुकड़ी वा फेड़हुँ पर से बीछथि भय तत्पर।
हमरा खूब खोआय शेषसँ अपनी जीवन यापथि
निशि दिन छातमे सटने रहि दुसह जरासँ काँपथि॥

41.
बीतल समय पाँखि हमरो किछ-किछ हरिअर भय गेले
सतत पिताक अंक सटि बैसल उड़हुक इच्छा भेले।
ताबत एक दिवस प्रातहिं अनघोल उठल काननमे
सब पक्षी मृग बाघ केर चीत्कार भरल आननमे॥

42.
डरसँ सिकुड़ल हुनक पेटमे हल्ला सब दिशि सुनलहुँ
बाघ एम्हर अछि एम्हर सिंह ई उजड़ल वन मन गुनलहुँ।
भीलक सेना घेरि विपिन मृगयारत सब मारै छल
घायल गेड़ा हाथी सिंह कनारि मारि गरजै छल॥

43.
एक पहरमे भेल शान्त रव हमहूँ होश सम्हारल
जनक कोरमे सटल उचकि क वनदिशि नयन उघाड़ल।
यमक दूत सब शबरक सेना खेलि शिकार घुरल छल
बड़-बड़ केश दाँत मुख भीषण क्रोधे जेना भरल छल॥

44.
ककरो तनु शोणितसँ भीजल बाघ कान्ह पर धयने
क्यो गजदन्त उखाड़ि हाथ धरि कृष्णक भेष बनओने।
हरिणक मांस लादि वहिङा पर क्यो बड़ भार मरै छल
टटका बाघ खाल शिर रखने शोणित अंग झरै छल॥