भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कानपूर–10 / वीरेन डंगवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


रात है रात बहुत रात बड़ी दूर तलक
सुबह होने में अभी देर हैं माना काफी
पर न ये नींद रहे नींद फकत नींद कहीं
ये बने ख्‍वाब की तफसील अंधेरों की शिकस्‍त