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कानपूर–6 / वीरेन डंगवाल

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फिर एक राह गुजरी
फिर नई सड़क बेकनगंज ऊंचे फाटकवाला यतीमखाना
बाबा की बिरियानी
'न्‍यू डिलक्‍स' के गरीब परवर कबाब-रोटी विद रायता
रमजान की पवित्र रातें
रात भर चहल-पहल पीतल के बड़े-बड़े हण्‍डों वाले चायखानों में
और फिर ईदः

टोपियां
नए कपड़ों में टोलियां
नेताओं और अफसरों से गले मिलते लोगों की
सालाना तस्‍वीरें स्‍थानीय अखबारों में

लाल आंखों वाला एक जईफ मुसलमान,
जब वो मुझसे पूछता है तो शर्म आती हैः
'जनाब, हमारी गलती क्‍या है?
कि हम यहां क्‍यों रहे?
हम वहां क्‍यों नहीं गए?'
इस पुराने सवाल का जवाब पूछती उसकी दाढ़ी
आधी सफेद आधी स्‍याह है.


शहर के सबसे गरीब लोग
इन्‍हीं पुरपेंच गलियों में रहते हैं
काबुक में कबूतरों की तरह दुमें सटाये
जिस्‍म की हरारत से तसल्‍ली लेते

सबसे भीषण-जांबाज युवा अपराधी भी यहां रहते हैं,

किश्‍तों पर ली गई सबसे ज्‍यादा तेज रफ्तार मोटर साइकिलें यहीं हैं

सबसे रईस लोग गोकि घर छोड़ गए हैं

मगर उनके अपने ठिकाने अब भी हैं यहीं.