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कानपूर–8 / वीरेन डंगवाल
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गंगाजी गई सुकलागंज 
घाट अपरंच भरे-भरे 
भैरोंघाट में विराजे हैं भैरवनाथ लाल-काले 
चिताओं और प्रतीक्षारत मुर्दों की सोहबत में, 
परमट में कन्नौजिया महादेव भांग के ठेले और आलू की टिक्की, 
सरसैयाघाट पर कभी विद्यार्थी जी भी आया करते थे 
अब सिर्फ कुछ पुराने तख्त पड़े हैं रेत पर, हारे हुए गंगासेवकों के, 
जाजमऊ के गंगा घाट पर नदी में सीझे हुए चमड़े की गंध और रस 
माघ मास की सूखी हुई सुर सरिता के ऊपर समानान्तर 
ठहरी-ठहरी सी बहती है 
गन्धक सरीखे गाढ़े-पीले कोहरे की 
एक और गंगा.
 
	
	

