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कान बड़े होते / श्रीप्रसाद
Kavita Kosh से
आठ फीट की टाँगें होतीं
चार फीट के हाथ बड़े
तो मैं आम तोड़कर खाता
धरती से ही खड़े-खड़े
कान बड़े होते दोनों ही
दो केले के पत्ते से
तो मैं सुन लेता मामा की
बातें सब कलकते से
नाक बड़ी होती हाकी-सी
तो फिर छत पर जाकर मैं
फूल सूँघता सात कोस के
अपनी नाक उठाकर मैं
आँख बड़ी होती बैंगन-सी
तो दिल्ली में ही रहकर
लालकिले से तुरत देखता
पूरा जैसलमेर शहर
सिर होता जो एक ढोल-सा
तो दिमाग जो पाता मैं
अँगरेजी, इतिहास, गणित सब
सबका सब रट जाता मैं
पेट बड़े बोरे-सा होता
सौ पेड़े, सौ खीरकदम
सौ बरफी, सौ बालूशाई
खाता पूरे सौ चमचम
पर खाना घरभर का खाता
यदि ऐसा कुछ होता मैं
कपड़े केसे मिलते ऐसे
हरदम ही तब रोता मैं।