काफल / पवन चौहान
लो फिर आ गया ‘काफल’
लाल, मैरुन रंग का
‘छड़ोल्हु’ में सजा
हर किसी के मुँह में जाने को तैयार
ऊँचे पहाड़ से उतरी
नीलू की माँ
हर साल लाती है काफल
बेचती है उन्हे षहर
और मैदान में बसे गाँव में
लोगों के लिए मात्र यह फल है
पर नीलू की माँ के लिए
कुदरत का यह तोहफा सौगात है
सौगात है
उसके और उसके परिवार के लिए
‘केबीसी’ के किसी एपीसोड में जीते
कम से कम रुपए जितनी
डेढ़-दो महीने के इस सीजन में
कमा लेती है वह गुजारे लायक
अपने परिवार के
जोड़ लेती है इन रुपयों से
अपने परिवार की जरुरत की चीजें
नीलू की माँ खुश है
इस बार भर गया है जंगल
काफल के दानों से
हर पेड़ हो गया है सुर्ख लाल
इस बार खूब होगी आमदन
जुटा लेगी वह इस बार
अपनी जरुरत का हर सामान
पिछले बर्श की भांति नहीं खलेगी
रुपयों की कमी
अपने बेटे को ‘ख्योड़’ मेले के लिए देगी वह
खुले मन से रुपए
पति के लिए लाएगी वह
एक बढ़िया-सी व्हील चेयर
अपने लिए भी खरीदेगी वह
अपनी पसंद का एक बढ़िया-सा सूट
वह बेच रही है काफल
घर-घर
बिना समय गँवाए
जानती है वह
ज्यादा दिन की नहीं है इसकी रौनक
कुछ ही दिनों में
फिर लौट आएगी उसकी
पुरानी दिनचर्या
जाएगी वह फिर
घर-घर
माँजेगी लोगों के जूठे बर्तन
धोएगी उनके मैले कपड़े
थकी हुई लौटेगी घर जब
नहीं होगी उसके चेहरे पर वह रौनक
जो काफल बेचने की थकान के बाद
रोज होती थी शाम को
जब करती थी वह काफल के दानों का हिसाब
नोटों की बढ़ती हर परत को खोलती हुई।
नोटः-1. ‘काफल’ हिमाचल का एक जंगली फल है जो गर्मी के मौसम में लगता है। लोग इसे बड़े चाव से खाते हैं। जंगल के किनारे रहने वाले गरीब लोग इन दिनों इसे घर-घर बेचकर अपनना घर चलाते हैं।
2. ‘छड़ोल्हु’- बाँस की बनी हुई टोकरी
3. ‘ख्योड’- हिमाचल के मण्डी जिले का एक प्रसिद्ध पहाड़ी मेला