Last modified on 26 नवम्बर 2015, at 00:56

काफ़ी है मुहब्बत बदगुमानी ही काफ़ी है / मोहिनी सिंह

काफ़ी है मुहब्बत बदगुमानी ही काफ़ी है
बागी हो जाने को जवानी ही काफ़ी है

लाखों दिलों में भर दे जो जोश इंक़लाब का
तबियत से की गई इक कुर्बानी ही काफ़ी है

दफ़न हो जाते हैं शहरों के कदमो तले जंगल
इन्सां की इक नज़र पड़ जानी ही काफ़ी है

तेरा सताना ज़रूरी नहीं है मेरे सनम
मुझे रुलाने को ये दाग हुई निशानी ही काफ़ी है

तेल पे होती थी जंग मुल्कों में बरसों पहले
अब तो आग लगाने को पानी ही काफ़ी है