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काबे ही का अब क़स्द ये गुम-राह करेगा / मीर 'सोज़'

काबे ही का अब क़स्द ये गुम-राह करेगा
जो तुम से बुताँ होगा सो अल्लाह करेगा

ज़ुल्फ़ों से पड़ा तूल में अब इश्क़ कर झगड़ा
ख़म आन के ये मझला कोताह करेगा

बोसे की तलब से तो रहेगा तभी ऐ दिल
जब गालियाँ दो-चार वो तनख़्वाह करेगा

आईने को टुक भर के नज़र देख तो प्यारे
वो तुझ को मेरे हाल से आगाह करेगा

अहवाल-ए-दिल-ए-ज़ार तुझे होवेगा मालूम
जब तू किसी मह-वश कि मियाँ चाह करेगा

वाही न समझ ‘सोज’ के पैमाँ को तू ऐ यार
जो तुझ से किया अहद सो निरबाह करेगा