भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कामनाओं की समाधि / कविता भट्ट

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

       
कामनाओं की समाधि पर
कुछ पुष्प चढ़ाया करती हूँ।
झूमती हूँ इक नाटक कर
फिर पग बढ़ाया करती हूँ।

न रूप, न रंग, न शब्द पर
अब मुस्कराया करती हूँ।
स्पर्श, गंध से विलग होकर
अनेकश: मर जाया करती हूँ।

-0-