उपजे महारथी प्रभु कोई;
हरे भार भारत-भूतल का भूति लाभ कर खोई।
अनुपम साहस-सलिल-धार से जाय हित-धारा धोई;
उलहे बेलि अलौकिक यश की विजय-अवनि में बोई।
पुलकित बने अपुलकित रह-रह विपुल प्रजा बहु रोई;
आशा-उषा राग-रंजित हो जागे जनता सोई।
उपजे महारथी प्रभु कोई;
हरे भार भारत-भूतल का भूति लाभ कर खोई।
अनुपम साहस-सलिल-धार से जाय हित-धारा धोई;
उलहे बेलि अलौकिक यश की विजय-अवनि में बोई।
पुलकित बने अपुलकित रह-रह विपुल प्रजा बहु रोई;
आशा-उषा राग-रंजित हो जागे जनता सोई।