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कामना / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल

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कामना
नील नयन में वायु तरंग सदृश मृदु हॅसकर
उस सुर कन्या सुन्दर प्रेयसि को पाने केा
बैठ तुम्हारे किसी श्रंग पर मैं यौवन भर
कर लूंगा तप, रोने से यदि उसका उर
पिधलेगा, मैं रोउॅगा रजनी भर जग कर
यदि हॅसने से वह आयेगी, मैं निर्झर सा
सदा रहूंगा हॅस हॅस जीवन पथ पर चलता
वह चाहेगी यदि कमलों का हार पहनना
अपने मानस के निर्मल तर पर धीरे से
उतर शान्त जल में चुपचाप खिले कमलों को
तोड, गूंथ दिन भर माला गुंजित छाया में
फिर संध्या के समय उसके चरणों पर
रख दूंगा, जैसे पृथ्वी अपनी शेाभा को
रख देती सन्ध्या के केामल चरणों पर।