भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
काम-क्रोध-लोभ-मद-विरहित / हनुमानप्रसाद पोद्दार
Kavita Kosh से
(तर्ज लावनी-तीन ताल)
काम-क्रोध-लोभ-मद-विरहित, शोक-मोह-भय-भ्रमसे हीन।
ज्ञानमूर्ति, निष्कामनिष्ठ अति, पावन परम प्रेमरस-पीन॥
नित्य शान्ति, आनन्द नित्य ही, तृप्ति नित्य अविचल अत्यन्त।
सर्वभूत हित-रति स्वाभाविक, समता, ममता-रहित अनन्त॥
वज्रादपि कठोर निज-हित जो, पर-हित कोमल कुसुम-समान।
अचल प्रतिष्ठित दैवी सपद, नित्य ज्ञान-विज्ञान-निधान॥
जिनमें भरे अखण्ड पूर्ण आनन्द, प्रेम शुचि, निर्मल ज्ञान।
जिनके रोम-रोममें छाये रहते स्वयं नित्य भगवान॥
जिनके तन-मन-वचन बहाते अविरल भगवद्-रसकी धार।
ऐसे संतोंके पद-कमलोंमें प्रणाम है बारंबार॥