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काम आएँ या न आएँ / बालस्वरूप राही
Kavita Kosh से
ये अधूरी कामनाएं
काम आएं या न आएं
पर इन्हें अपने हृदय से
हम भला कैसे भुलाएं।
राह घेरे ये अंधेरे
दे रहे इसकी गवाही
रोशनी के साथ अपनी
दोस्ती हम ने निबाही।
एकतरफा मित्रताएं
काम आएं या न आएं
किन्तु पथ के साथियों से
हाथ हम कैसे छुड़ाएं।
सत्य है कुछ स्वप्न झूठे
बन गये जीवन हमारा
वास्तविकता ने इसी से
जड़ दिया चांटा करारा।
ये ज़रूरी काम तजकर
गीत थोड़े से रचे हैं
खो चुके अब तक बहुत से
सिर्फ गिनती के बचे हैं
ये पुरानी पत्रिकाएं
काम आएं या न आएं
किन्तु इन को बेच कर हम
कौन सी अब चीज़ लाएं
ठीक ही होगा कि दुनिया
दूसरी ही हो गई है
सौ तरह की हलचलों में
आज कविता खो गई है।
ये सृजन संभावनाएं
काम आएं या न आएं
पर अनुर्वरता पराई
किसलिए हम आज़माएं।