काम आखि़र जज्बा-ए-बेइख्तियार आ ही गया / जिगर मुरादाबादी
काम आख़िर जज़्बा-ए-बेइख़्तियार<ref> विवशता की भावना</ref> आ ही गया
दिल कुछ इस सूरत तड़पा उनको प्यार आ ही गया
जब निगाहें उठ गईं अल्लाह री मे’राजे-शौक़<ref>इश्क़ की चरम सीमा </ref>
देखता क्या हूँ वो जाने-इन्तिज़ार<ref>प्रतीक्षा का प्राण अर्थात प्रेयसी </ref> आ ही गया
हाय ये हुस्न-ए-तस्व्वुर का फ़रेब-ए-रंग-ओ-बू
मैंने समझा जैसे वो जाने बहार आ ही गया
हाँ, सज़ा दे ऎ खु़दा-ए-इश्क़ ऎ तौफ़ीक़-ए-ग़म
फिर ज़ुबान-ए-बेअदब पर ज़िक्र-ए-यार आ ही गया
इस तरहा हूँ किसी के वादा-ए-फ़रदा<ref>आने वाले कल के वादे पर</ref> पे मैं
दर हक़ीक़त जैसे मुझको ऐतबार आ ही गया
हाय, काफ़िर दिल की ये काफ़िर जुनूँ अंगेज़ियाँ<ref>उन्माद पूर्ण हरकतें</ref>
तुमको प्यार आए न आए, मुझको प्यार आ ही गया
जान ही दे दी ` जिगर' ने आज पा-ए-यार<ref> प्रेयसी के क़दमों </ref> पर
उम्र भर की बेक़रारी को क़रार आ ही गया