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काम आसाँ हो तो दुश्वार बना लेता हूँ / शाज़ तमकनत
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काम आसाँ हो तो दुश्वार बना लेता हूँ
राह चलता हूँ दीवार बना लेता हूँ
जादा-ए-शौक को वीराँ नहीं होने देता
रोज़ नक़्श-ए-क़दम-ए-यार बना लेता हूँ
यूँ के लहजा से नुमाया न हो हसरत कोई
एक पैराया-ए-इज़हार बना लेता हूँ
वही तस्वीर जिसे मैं ने बनाया सौ बार
वही तस्वीर फिर इक बार बना लेता हूँ
ऐ ख़ुशी ग़म की कसौटी पे परख लूँ तुझ को
ऐ वफ़ा आ तुझे मेयार बना लेता हूँ
हाए वो लोग जिन्हें गिनता था बे-गानों में
आज मिलते हैं ग़म-ख़्वार बना लेता हूँ
‘शाज़’ गर्दिश-गह-ए-अफ़्लाक-ए-तमन्ना मत पूछ
नौ-ब-नौ साबित-ओ-सय्यार बना लेता हूँ