भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

काम करती स्त्री / माया एंजलो

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुझे बच्चों की देखभाल करनी है
कपड़े सिलने है
पोंछा लगाना है
बाज़ार से सामान लाना है
फिर चिकन फ्राई करना है
पोंछना है बच्चे का गीला बदन
पूरे कुनबे को खाना खिलाना है
बगीचे से खरपतवार हटाना है
कमीज़ों पर इस्त्री करनी है
कनस्तर काटना है
साफ़ करनी है यह झोंपड़ी
बीमार लोगों की देखभाल करनी है
और कपास चुनना है ।

धूप ! बिखर जाओ मुझ पर
बारिश ! बरस जाओ मुझ पर
ओस की बूँदों ! धीरे-धीरे गिरो मुझ पर
ठण्डा करो मेरे माथे को ।

तूफ़ान ! उड़ा ले चलो मुझे यहाँ से
अपनी प्रचण्ड हवा के साथ
तैरने दो मुझे आकाश में
जब तक पूरा न हो मेरा विश्राम ।

हिम-कण ! धीरे-धीरे गिरो
छा जाओ मुझ पर
भर दो मुझे सफेद शीतल चुम्बनों से
और आराम करने दो मुझे
आज की रात ।

सूर्य ! बारिश ! सर्पिल आकाश !
पहाड़ ! समुद्र ! पत्तियों और पत्थर
तारों की चमक, चन्द्रमा की आभा
सिर्फ़ तुम हो
जिन्हें मैं अपना कह सकती हूँ ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : मणि मोहन