भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

काम के उपनगर में / टोमास ट्रान्सटोमर / मोनिका कुमार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

काम करने के बीचों-बीच
हम जंगल की हरियाली के लिए
तड़प उठते हैं
सिर्फ़ जंगल के बीच होने के लिए
शहर दाख़िल हो तो बस इतना
कि कहीं टेलीफ़ोन के पतले तार ही दिखें

फ़ुर्सत का चन्द्रमा अपने वज़न और आयतन से
व्यस्तताओं के ग्रह के चक्कर काटता है
ऐसा करना ही इनकी मंशा है
जब हम घर लौट रहे होते हैं
तो ज़मीन अपने कान छेद लेती है
भूमिगत जो भी है
वह घास की पत्तियों से हमें सुनता है

इस कामकाजी दिन में भी एक निजी सुकून है
जैसे किसी धुआँसे अन्दरूनी इलाके में एक नहर बहती हो
ट्रैफ़िक के बीचों-बीच एक नौका प्रकट होती है
या फिर यह सफ़ेद ख़ानाबदोश नौका
जो किसी फ़ैक्टरी के पीछे से निकल आती है

एक इतवार मैं धूसरित पानी के किनारे बनी
नई इमारत के सामने से गुज़रा
जिस पर अभी रंग-रोगन नहीं हुआ था
इसका काम अभी आधा ही हुआ है
लकड़ी का रंग ठीक वैसा है
जैसे स्नान कर रहे व्यक्ति की चमड़ी का होता है

कन्दीलों से दूर
सितम्बर की रात बिल्कुल काली है
जब आँखें अन्धेरे के साथ सहज होती हैं
तो मैदान के ऊपर मद्धम रोशनी दिखाई देती है
जहाँ बड़े-बड़े घोंघे बाहर निकल रहे हैं
और खुमियाँ
खुमियाँ तो उतनी
जितने तारे हों गिनती में

अँग्रेज़ी से अनुवाद : मोनिका कुमार