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काम कोई ठोस हो स्वप्निल नहीं / बाबा बैद्यनाथ झा

काम कोई ठोस हो स्वप्निल नहीं
दिल लगाकर जो करे मुश्किल नहीं

डूबता ही जा रहा मझधार में
दीखता है दूर तक साहिल नहीं

जोश जज़्बा ले सदा आगे बढ़ें
कौन कहता है मिले मंजिल नहीं

इल्म कोई सीखना हो सीख लें
सोचिए मत आप हैं क़ाबिल नहीं

हो फ़रेबी आदमी 'बाबा' कभी
चाह ले जो हो उसे हासिल नहीं