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काम पियासिन / बाद्लेयर
Kavita Kosh से
घनी साँवली, निशि-सी काली नारि अजूबी,
अभिमंत्रित-सी ओझाओं के मंत्रों निकली,
किस गुरु जादूगर के हाथों की चितपुतली-
गंध सिगार के बसी कि ज्यों लोबानो डूबी;
सर्वोत्तम शराब किंवा अफ़ीम की घनी खुमारी
इनसे बढ़कर अधर सुधा पर प्यार रीझता,
मत्त कामनाओं का मानो ज्वार झूमता-
छकता जी भर सुमुखि तुम्हारी दीठि दुआरी;
घन कजरारी इन आँखों का महका मदरस
इतना नहीं उलीचो डाकिन मेरी, बस-बस,
मैं अनथक न पिशाच कि तुमको रहूँ लपेटे;
मैं न वासना-प्रेत कि काम-कामना चंडी
पस्त-लस्त कर पाऊँ तुम्हें करारी रण्डी-
शैयासुख बन नर्क न मेरी कर ही दे टें !
अंग्रेज़ी से अनुवाद : रामबहादुर सिंह 'मुक्त'