काम सब ठप है कारख़ानों में
लोग उलझे हैं संविधानों में
ताम्रपत्रों पे हक़ है उनका भी
जो कहीं दब गए खदानों में
आप भी आग तो उगलते हैं
हाँ मगर मंच पर बयानों में
धूप कैसी है आप क्या जानें
आप बैठे हैं सायबानों में
सब तो अंधे हैं कौन हो सरदार
बात ज़ेरे-बहस है कानों में