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कायनात-ए-आरज़ू में हम बसर करने लगे / चित्रांश खरे

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कायनात-ए-आरज़ू में हम बसर करने लगे
सब बहुत नफरत से क्यूँ हमपर नज़र करने लगे

तेरे हर लम्हे का हमने आज तक रख्खा हिसाब,
ये अलग है बात खुद को बेखबर करने लगे

ज़िंदगी को अलविदा कहकर चला जाऊंगा में,
जब मेरी तन्हाई मुझको दरवादर करने लगे

मुल्क की बरवादियाँ उस वक़्त तय हो जायेंगी,
जब बुरी तहज़ीब बच्चों पर असर करने लगे

या खुदा राहे वफ़ा पर रहबरी करना मेरी,
जब मुझे गुमराह मेरा हमसफ़र करने लगे

छोड़कर उस वक़्त ओहदे खुद चला जाऊँगा में,
शक़ जहाँ कोई मेरे ईमान पर करने लगे

इश्क़ के उस मोड़ को सब लोग कहते हैं जुनूं,
दिल किसी को याद जब शामों-सहर करने लगे