भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
काया अर भंवरौ / ॠतुप्रिया
Kavita Kosh से
थूं
झूठ अर कपट कर’र
धन भेळौ करै
ऊपरलै स्यूं
क्यूं नीं डरै
देखो
प्रकृति री माया
थारी
अठैई रै’ ज्यासी
काया
जींवतै जीव
करता रैया झोड़
अर
भंवरौ चल्यौ ज्यासी
आपरी नूंई ठौड़।